चीन में छात्रों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल और थ्येन आनमन चौक नरसंहार, 1989

Pushpendra Singh
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13 मई 1989 का थ्येन आनमन चौक आंदोलन चीन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और दुखद घटना है। यह आंदोलन न केवल छात्रों की राजनीतिक सुधारों की मांग को दर्शाता हैबल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक ताकतवर सरकार ने अपने ही नागरिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की। इस लेख में हम इस घटना के बारे मे जानेगे जिसमें इसके कारणघटनाक्रमपरिणाम और दीर्घकालिक प्रभाव शामिल होंगे।

 

चीन में उस समय की स्थिति

1980 के दशक में चीन में बड़े आर्थिक सुधार हो रहे थे। डेंग शियाओपिंग के नेतृत्व में देश ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और बाजार-आधारित सुधारों को अपनाया। इससे चीन में आर्थिक प्रगति तो हुई, लेकिन कई सामाजिक और राजनीतिक समस्याएँ भी सामने आईं। इनमें भ्रष्टाचार, असमानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध जैसी समस्याएँ शामिल थीं।

 

छात्र और बुद्धिजीवी वर्ग इन समस्याओं से सबसे ज्यादा प्रभावित था। वे चाहते थे कि सरकार न केवल आर्थिक सुधार करे, बल्कि राजनीतिक सुधार भी लाए, जैसे कि अधिक लोकतंत्र, प्रेस की स्वतंत्रता और सरकार में पारदर्शिता। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी का शासन बहुत सख्त था, और वह किसी भी तरह के विरोध को बर्दाश्त नहीं करती थी। इस पृष्ठभूमि में थ्येन आनमन चौक का आंदोलन शुरू हुआ।

 

आंदोलन की शुरुआत: भूख हड़ताल

13 मई, 1989 को बीजिंग के थ्येन आनमन चौक पर हजारों छात्र इकट्ठा हुए। यह चौक चीन की राजधानी में एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक स्थान है, जो कई बार राष्ट्रीय आंदोलनों का केंद्र रहा है। छात्रों का मुख्य उद्देश्य था सरकार से लोकतांत्रिक सुधारों की मांग करना। वे चाहते थे कि सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए, प्रेस को स्वतंत्रता दे और लोगों को अपनी बात कहने का अधिकार दे।

 

इस आंदोलन की शुरुआत कुछ हद तक अप्रैल 1989 में हुई, जब पूर्व कम्युनिस्ट पार्टी नेता हू याओबांग की मृत्यु हुई। हू याओबांग को सुधारवादी नेता माना जाता था, और उनकी मृत्यु के बाद छात्रों ने उनके सम्मान में प्रदर्शन शुरू किए। ये प्रदर्शन धीरे-धीरे सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन में बदल गए। मई तक यह आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था, और थ्येन आनमन चौक इसका केंद्र बन गया।

 

13 मई को छात्रों ने भूख हड़ताल शुरू की, जो एक शांतिपूर्ण लेकिन प्रभावशाली तरीका था अपनी मांगों को सामने रखने का। इस हड़ताल में हजारों छात्र शामिल हुए, और उन्होंने चौक पर तंबू लगाकर दिन-रात डेरा डाला। यह हड़ताल न केवल छात्रों तक सीमित रही, बल्कि इसमें शिक्षक, पत्रकार, मजदूर और आम नागरिक भी शामिल हो गए।

 

आंदोलन का विस्तार और मांगें

छात्रों की मांगें बहुत स्पष्ट थीं। वे चाहते थे:

1.    लोकतंत्र: सरकार में अधिक पारदर्शिता और लोगों को चुनने का अधिकार।

2.    भ्रष्टाचार पर रोक: सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार को खत्म करना।

3.    प्रेस की स्वतंत्रता: पत्रकारों को बिना डर के सच लिखने की आजादी।

4.    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: लोगों को अपनी राय खुलकर व्यक्त करने का अधिकार।

यह आंदोलन शांतिपूर्ण था, और छात्रों ने इसे हिंसक होने से बचाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने गाने गाए, नारे लगाए और बैनर बनाए। थ्येन आनमन चौक पर एक बड़ा प्रतीकात्मक ढांचा भी बनाया गया, जिसे "लोकतंत्र की देवी" (Goddess of Democracy) कहा गया। यह मूर्ति स्वतंत्रता और लोकतंत्र का प्रतीक थी, और इसने दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया।

 

सरकार की प्रतिक्रिया

शुरुआत में सरकार ने इस आंदोलन को नजरअंदाज करने की कोशिश की। लेकिन जैसे-जैसे यह आंदोलन बढ़ता गया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे कवर करना शुरू किया, सरकार पर दबाव बढ़ने लगा। उस समय सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव चीन की यात्रा पर आने वाले थे, और सरकार नहीं चाहती थी कि यह आंदोलन दुनिया के सामने उनकी छवि खराब करे।


कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर इस आंदोलन को लेकर मतभेद थे। कुछ नेता, जैसे झाओ जियांग, चाहते थे कि छात्रों से बातचीत की जाए और उनकी मांगों पर विचार किया जाए। लेकिन कट्टरपंथी नेताओं, जैसे ली पेंग और डेंग शियाओपिंग, का मानना था कि यह आंदोलन पार्टी के शासन के लिए खतरा है और इसे सख्ती से दबाना चाहिए।


20 मई, 1989 को सरकार ने बीजिंग में मार्शल लॉ (सैन्य कानून) लागू कर दिया। इसका मतलब था कि सेना को शहर में तैनात किया गया और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी गई। लेकिन छात्रों ने हार नहीं मानी। वे चौक पर डटे रहे और अपनी मांगों को दोहराते रहे।

 

3-4 जून, 1989: नरसंहार

आंदोलन के चरम पर, 3 और 4 जून, 1989 की रात को, सरकार ने सेना को थ्येन आनमन चौक को खाली करने का आदेश दिया। टैंक और हथियारबंद सैनिकों को बीजिंग की सड़कों पर उतारा गया। यह कार्रवाई इतनी क्रूर थी कि इसे "थ्येन आनमन चौक नरसंहार" के नाम से जाना जाता है।


सेना ने न केवल चौक पर मौजूद प्रदर्शनकारियों पर हमला किया, बल्कि बीजिंग की सड़कों पर भी गोलीबारी की। कई लोग, जिनमें छात्र, मजदूर और आम नागरिक शामिल थे, मारे गए। सटीक मृत्यु आंकड़ा आज भी विवादास्पद है। कुछ अनुमानों के अनुसार सैकड़ों लोग मारे गए, जबकि अन्य का दावा है कि मृतकों की संख्या हजारों में थी।


इस नरसंहार का सबसे प्रसिद्ध प्रतीक है "टैंक मैन" की तस्वीर। यह एक अज्ञात व्यक्ति था, जो अकेले टैंकों की कतार के सामने खड़ा हो गया और उन्हें रोकने की कोशिश की। यह तस्वीर दुनिया भर में वीरता और प्रतिरोध का प्रतीक बन गई।


 

थ्येन आनमन चौक नरसंहार, 1989

परिणाम और प्रभाव

थ्येन आनमन चौक नरसंहार के बाद आंदोलन पूरी तरह कुचल दिया गया। सरकार ने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया, कई लोगों को जेल में डाला गया और कुछ को मौत की सजा दी गई। चीन में इस घटना के बारे में बात करना आज भी वर्जित है। सरकार ने इस आंदोलन को "राजनीतिक अशांति" करार दिया और इसे इतिहास से लगभग मिटा दिया।

 

लेकिन इस घटना का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गहरा प्रभाव पड़ा। कई देशों ने चीन की निंदा की और उस पर प्रतिबंध लगाए। मानवाधिकार संगठनों ने इस नरसंहार को मानवता के खिलाफ अपराध बताया। दुनिया भर में लोग इस आंदोलन को लोकतंत्र और स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक के रूप में देखते हैं।

 

दीर्घकालिक प्रभाव

1.    चीन में सेंसरशिप: इस घटना के बाद चीन में सेंसरशिप और सख्त हो गई। इंटरनेट और मीडिया पर कड़ी निगरानी रखी जाती है, और थ्येन आनमन के बारे में कोई भी जानकारी छिपाई जाती है।

2.    लोकतंत्र की मांग: भले ही यह आंदोलन दबा दिया गया, लेकिन इसने दुनिया भर में लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाने वालों को प्रेरित किया।

3.    चीन की छवि: अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चीन की छवि को इस घटना ने नुकसान पहुँचाया। कई देशों ने चीन के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार किया।

निष्कर्ष

थ्येन आनमन चौक आंदोलन एक ऐसी घटना है जो न केवल चीन, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक है। यह दिखाता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मांग कितनी महत्वपूर्ण है, और इसे दबाने की कोशिश कितनी भयानक हो सकती है। छात्रों का यह शांतिपूर्ण आंदोलन भले ही कुचल दिया गया, लेकिन इसकी भावना आज भी जीवित है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चाई और न्याय के लिए लड़ना कभी व्यर्थ नहीं जाता।

 

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