भारत
और भूटान के संबंध ऐतिहासिक रूप से बहुत ही घनिष्ठ और दोस्ताना रहे हैं। दोनों देश
सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से एक-दूसरे
के बेहद करीब हैं। भूटान एक छोटा हिमालयी देश है जो भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित
है। इसकी विशेषता यह है कि यह कभी भी उपनिवेश नहीं बना और हमेशा अपनी स्वतंत्रता को
बनाए रखने में सफल रहा। भूटान की भौगोलिक स्थिति भी भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत
महत्वपूर्ण है। भारत और भूटान के रिश्ते की शुरुआत 1910 में उस
समय हुई थी जब भूटान ने ब्रिटिश भारत के साथ एक संधि की थी। इस संधि के अनुसार ब्रिटिश
भारत भूटान के विदेशी मामलों में मार्गदर्शन करता था।
1947
में भारत की स्वतंत्रता के बाद भूटान उन पहले देशों में था, जिसने भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। इसके बाद
1949 में भारत और भूटान ने मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए। इस संधि ने
दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की नींव रखी। इसमें एक-दूसरे के आंतरिक मामलों
में हस्तक्षेप न करने और आपसी सम्मान की बात कही गई। हालांकि उस समय भूटान की विदेश
नीति में भारत का मार्गदर्शन रहता था।
1950
के दशक में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भारत और भूटान का सामरिक महत्व
और अधिक बढ़ गया। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1958 में भूटान
का दौरा किया और उसके स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रखने का आश्वासन दिया। इसके बाद भूटान
की सेना के आधुनिकीकरण में भारत ने मदद की। दोनों देशों के बीच आर्थिक और रक्षा सहयोग
भी बढ़ा। 1973 से 1984 के बीच दोनों देशों
ने अपने सीमा सीमांकन से जुड़े मुद्दों का भी हल किया। केवल कुछेक क्षेत्र अब भी विचाराधीन
हैं।
भारत
ने
2007 में 1949 की संधि को फिर से संशोधित किया।
अब भूटान को अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति दी गई और हथियार
खरीद के लिए भारत की पूर्व स्वीकृति की शर्त भी हटा दी गई। इससे दोनों देशों के बीच
संबंधों में और पारदर्शिता और विश्वास बढ़ा।
नरेंद्र
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा भूटान की ही की।
इससे साफ संदेश गया कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ मजबूत रिश्ते रखना चाहता है। उन्होंने
भूटान में सुप्रीम कोर्ट परिसर का उद्घाटन किया और वहां के आईटी व डिजिटल क्षेत्र में
निवेश का वादा किया। कोविड-19 महामारी के दौरान भी भारत
ने अपनी 'पड़ोसी पहले नीति' के तहत
भूटान को मुफ्त वैक्सीन की आपूर्ति की।
आर्थिक
संबंधों की बात करें तो भारत भूटान का सबसे बड़ा विकास सहयोगी और व्यापारिक साझेदार
है। भूटान की कुल व्यापारिक गतिविधियों में भारत का हिस्सा सबसे ज्यादा है। भारत भूटान
में कई जलविद्युत परियोजनाओं में निवेश कर रहा है। भारत भूटान में
1,400 मेगावाट की 3 परियोजनाएं चला रहा है और लगभग
2,100 मेगावाट की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। जलविद्युत भूटान की अर्थव्यवस्था
का सबसे बड़ा स्तंभ है। इससे न केवल राजस्व आता है बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।
भारत इस जलविद्युत को खरीद कर अपने राज्यों को आपूर्ति करता है। इससे दोनों देशों को
लाभ होता है।
रक्षा
सहयोग भी दोनों के बीच काफी मजबूत है। भूटान स्थल-रुद्ध देश है,
इसलिए इसकी वायु सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय वायु सेना की पूर्वी कमान
संभालती है। भूटान की सेना छोटी है और भारतीय सेना के साथ मिलकर आतंकवाद और विद्रोह-विरोधी
अभियानों में काम करती है। पश्चिमी भूटान में भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (IMTRAT)
भी तैनात है, जो भूटानी सैनिकों को प्रशिक्षण देता
है।
भूटान
और भारत के बीच संबंध केवल सामरिक और आर्थिक स्तर पर ही नहीं,
सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी बहुत गहरे हैं। दोनों देशों के लोगों
की धार्मिक आस्था और संस्कृति में भी समानता है। दोनों देशों में बौद्ध धर्म का गहरा
प्रभाव है। भारत के बौद्ध तीर्थस्थल जैसे बोधगया भूटानी लोगों के लिए विशेष महत्व रखते
हैं।
हाल
के वर्षों में भूटान और चीन के बीच सीमा वार्ता ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। भूटान-चीन
सीमा विवाद भारत के लिए इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि यह डोकलाम क्षेत्र से जुड़ा
हुआ है। डोकलाम भारत के 'चिकन नेक' कहे जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर के नजदीक है, जो उत्तर-पूर्वी
भारत को देश के बाकी हिस्से से जोड़ता है। अगर चीन यहां कोई सैन्य गतिविधि करता है,
तो भारत की सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
2017
में डोकलाम में भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध हुआ था। उस समय भूटान
ने चीन के साथ कोई समझौता नहीं किया और भारत को हर गतिविधि की जानकारी दी। भूटान इस
बात को समझता है कि उसकी सुरक्षा भारत से जुड़ी है। 2007 की मैत्री
संधि में यह स्पष्ट कहा गया है कि भूटान भारत की रणनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखेगा।
भारत ने भी साफ कर दिया है कि भूटान-चीन वार्ता में वह हस्तक्षेप नहीं करेगा लेकिन
अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा।
हालांकि,
सोशल मीडिया और भूटान के कुछ हलकों में भारत विरोधी भावनाएं भी देखी
जाती हैं। कुछ लोग यह मानते हैं कि भारत सुरक्षा का बहाना बनाकर भूटान को अपने नियंत्रण
में रखना चाहता है। दूसरी तरफ चीन भी भूटान को लुभाने की कोशिश कर रहा है। वह भूटानी
छात्रों को छात्रवृत्तियां और आधुनिक शहरों की चमक दिखाकर आकर्षित करने की कोशिश करता
है।
भविष्य
में भारत को चाहिए कि वह भूटान के भीतर की भावनाओं को भी समझे। वहां के युवाओं और आम
लोगों से सांस्कृतिक और शैक्षिक जुड़ाव बढ़ाए। केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं,
लोगों से लोगों के बीच रिश्ते मजबूत करने की जरूरत है। भारत को भूटान
की आजादी और संप्रभुता का सम्मान करते हुए, दोस्ती और विश्वास
के साथ आगे बढ़ना चाहिए। भूटान-चीन संबंधों को लेकर भारत को असुरक्षा नहीं दिखानी चाहिए।
भूटान भी यह समझता है कि चीन के साथ ज्यादा नजदीकी उसकी परंपरागत स्वतंत्र नीति और
भारत के साथ रिश्तों को नुकसान पहुंचा सकती है।
इसलिए
भारत और भूटान के रिश्ते सामरिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से गहरे हैं। दोनों देशों का हित एक-दूसरे से जुड़ा
हुआ है। भारत भूटान का सबसे बड़ा विकास भागीदार है। भूटान के जलविद्युत प्रोजेक्ट और
अन्य विकास कार्यों में भारत की भूमिका निर्णायक है। रक्षा के मोर्चे पर भी दोनों के
रिश्ते मज़बूत हैं। चीन के साथ सीमा विवाद की स्थिति में भूटान ने बार-बार भारत के
हितों का ध्यान रखा है।
आगे
चलकर भारत को भूटान के साथ अपने संबंधों में और गर्मजोशी,
विश्वास और परस्पर सम्मान का भाव बनाए रखना चाहिए। युवाओं के बीच संपर्क,
सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे
क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना चाहिए। केवल बड़े प्रोजेक्ट और सैन्य मदद तक सीमित रहकर
भारत को भूटान को अपने से जोड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि
आम नागरिकों के स्तर पर भी रिश्ता मज़बूत करना चाहिए। इसी रास्ते से दोनों देशों का
पारंपरिक और घनिष्ठ रिश्ता आगे भी कायम रह सकेगा।
भारत
और भूटान के रिश्ते दक्षिण एशिया में एक आदर्श हैं, जहां
दो देशों के बीच बिना किसी वर्चस्व और दबाव के मैत्रीपूर्ण, सहयोगपूर्ण
और सम्मानजनक संबंध कायम किए जा सकते हैं। यही रिश्ता आने वाले समय में भारत की 'पड़ोसी पहले नीति' और पूरे हिमालयी क्षेत्र में स्थायित्व
और विकास का आधार बनेगा।